किसकी चाय बेचता है तू
~ ब्रजरंजन मणि
अपने को चाय वाला क्यूँ कहता है तू
बात-बात पे नाटक क्यूँ करता है तू
चाय वालों को क्यों बदनाम करता है तू
साफ़ साफ़ बता दे किसकी चाय बेचता है तू !
खून लगाकर अंगूठे पे शहीद कहलाता है
और कॉर्पोरेट माफिया में मसीहा देखता है
अंबानी-अदानी की दलाली से ‘विकास’ करता है
अरे बदमाश, बता दे, किसकी चाय बेचता है तू !
खंड-खंड हिन्दू पाखंड करता है
वर्णाश्रम और जाति पर घमंड करता है
फुले-अंबेडकर-पेरियार से दूर भागता है
अरे ओबीसी शिखंडी, किसकी चाय बेचता है तू !
मस्जिद गिरजा गिराकर देशभक्त बनता है
दंगा-फसाद की तू दाढ़ी-मूछ उगाता है
धर्म के नाम पर बस क़त्ले-आम करता है
अरे हैवान बता तो, किसकी चाय बेचता है तू !
धर्मपत्नी को छोड़ कुंवारा बनता है
फिर दोस्त की बेटी से छेड़खानी करता है
काली टोपी और चड्डी से लाज बचता है
अरे बेशर्म, किसकी चाय बेचता है तू !
काली करतूतों से शर्म नहीं करता है
कोशिश इन्सान बनने की ज़रा नहीं करता है
चाय वालों को मुफ्त में बदनाम करता है
अरे मक्कार अब तो कह दे, किसकी चाय बेचता है तू !
अपने को चाय वाला क्यूँ कहता है तू
बात-बात में नाटक क्यूँ करता है तू
चाय वालों को क्यों बदनाम करता है तू
साफ़ साफ़ बता दे किसकी चाय बेचता है तू !
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Here’s the English transliteration (and translation) of the poem:
Kiski Chai Bechata Hai Tu (Whose Tea Do You Sell)